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Sunday, 31 January 2010

अफ्रीकन चिकोरी अब सुणतर में

रानीवाड़ा

दक्षिण अफ्रीका व ईजराईल में प्रचुर मात्रा में पैदा होने वाली प्रोटिनयुक्त चिकोरी औषधी सुणतर क्षेत्र के धामसीन गांव में पहुंच गई है। इस गांव में इस औषधीय पौधे की खेती की जा रही है और अगर यह सफल होती है तो यकीनन किसानों के लिए काफी फायदेमंद होगी। औषधी निर्माण के अलावा इस पौधे का उपयोग कॉफी पाउडर में भी किया जाता है। पालनपुर निवासी अरविंद पटेल ने धामसीन के भीमसिंह देवड़ा के कृषि फार्म पर प्रथम बार प्रयोग कर औषधीय खेती में क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं।

क्या है चिकोरी : चिकोरी एक प्रकार का पौधा है। जिसकों जड़ों में प्रोटिन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। कसैला स्वाद होने के कारण इस औषधि को काफी में मिक्स किया जाता है। पटेल के अनुसार इस पौधे की जड़ों को आयुर्वेदिक औषधि बनाने में किया जाता है। इसका बीज ईजराईल से मंगवाया जाता है। पौधा सूखने के बाद स्वादिष्ट होने से इसको दुधारू पशुओं को खिलाने पर दूध की मात्रा में इजाफा होता है।

अनुकूल है जलवायु

चिकोरी के लिए उष्णीय जलवायु अनुकूल मानी जाती है। जिसके लिए पश्चिमी राजस्थान अच्छा माना गया है। रानीवाड़ा क्षेत्र में अभी इसका प्रयोग किया जा रहा है अगर यह सफल होती है तो अन्य किसान भी इसे अपना सकेंगे। जिससे उन्हें अतिरिक्त आया हो सकेगी।

किसानों के लिए फायदेमंद

रा नीवाड़ा में इसे अभी प्रायोगिक तौर पर किया जा रहा है, लेकिन अगर यह सफल होती है तो इसका किसानों को फायदा होगा। खेती की सार संभाल कर रहे सोमाराम मेघवाल ने बताया कि चिकोरी की बुवाई सितम्बर में की जाती है तथा फरवरी में पौधा परिपक्व हो जाता है। जड़ों को थ्रेसर में छोटे-छोटे टुकड़ों में बदलने के बाद सुखाया जाता है। बाद में यह कॉफी में मिश्रण के लिए तैयार हो जाती है। उन्होंने बताया कि एक बीघा खेती में एक हजार रूपए का खर्चा होता है तथा इससे पन्द्रह हजार रूपए की आय अर्जित की जा सकती है। चिकोरी के हरे पौधे को पालतु व जंगली जानवर नष्ट नहीं करते हंै।

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