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Saturday 23 April 2011

सौमरी माता मंदिर के लिए सीढिय़ों का निर्माण कार्य शुरू


रानीवाड़ा।
प्रसिद्ध सौमरी माता मंदिर का कायाकल्प होने जा रहा है। राज्य सरकार के द्वारा धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने को लेकर इस पर्वतीय तीर्थ स्थल को विकसित करने के लिए विधायक देवासी के प्रयासों ने रंग लाना शुरू कर दिया है। पर्वत पर स्थित मंदिर तक जाने के लिए सीढिय़ों का निर्माण कार्य शुरू हो गया है।
सरपंच झमका कंवर ने बताया कि विधायक की अनुशंषा पर ग्राम पंचायत ने छ: लाख रूपए की लागत से सीढी निर्माण का कार्य शुरू किया है। इस कार्य के होने के बाद हर वर्ष सौमेरी माता के दर्शन के लिए आने वाले हजारों श्रद्धालुओं को मंदिर तक आने में सुगमता महसूस हो सकेगी। उन्होंनें बताया कि पर्वत पर स्थित प्राकृतिक तालाब में साल में 8 महिने जल का संग्रहण किया जाता है। आस्था के प्रतीक इस तालाब के दर्शनाथ भी काफी तादाद में श्रद्धालु दुर्गम रास्ता पार कर आते है। सीढी निर्माण होने के बाद इस प्राचीन मंदिर का विकास हो सकेगा। इस विषय को लेकर विधायक देवासी ने बताया कि सुंधामाता की बहिन माने जाने वाली सौमेरी माता तीर्थ का विकास करने में कोई कमी नही रखी जाएगी। सीढ़ी निर्माण का प्रथम चरण का कार्य शुरू करवा दिया गया है। द्वितीय चरण में इस कार्य को पूरा कराने में धन की कोई कमी आडे नही आएगी। पर्वत की तलहटी में नलकूंप स्थापित किया जाएगा तथा विद्युत कनेक्शन ने जोड़ा जाएगा। दानदाता व श्रद्धालुओं के सहयोग से भव्य प्रवेश द्वार एवं सामुदायिक सभा भवन का निर्माण भी किया जाएगा। पर्वत की तलहटी तक जाने के लिए श्रद्धालुओं को कच्चा रास्ता पार कर जाना पड़ता था, उस जगह अब 52 लाख की लागत से डामर सड़क का कार्य भी प्रगति पर है।
तीर्थ स्थल का परिचय :- उपख्ंाड़ मुख्यालय से करीब १८ किलोमीटर चरपटिया गांव के पास यह ऐतिहासिक एवं प्राचीन तीर्थस्थल है। अरावली पर्वतमाला के इस पहाड़ का नाम सौमेरा होने के कारण इस देवी को सौमेरी माता के नाम से भी जाना जाता है। मां की प्रतिमा बिना धड़ के होने कारण इसे अधदेश्वरी भी कहा जाता है। सौमेरा पर्वत का पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से भी कम महत्व नहीं है। त्रिपुर राक्षस का वध करने के लिए आदि देव की तपोभूमि यहीं मानी जाती है। यह स्थान अनेक ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रही है तथा यही पर भारद्वाज ऋ षि का आश्रम भी बताया जाता है।
प्रभाव व श्रद्धालु:- राजस्थान के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश से प्रतिवर्ष हजारों लोग यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। साल में दो बार नवरात्रों के समय यहाँ नौ दिन मेले सा आयोजन होता है और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुट जाती है। हर माह के शुक्ल पक्ष की तेरस से पूर्णिमा तक मंदिर में अधिक दर्शानार्थी आते हैं। यह स्थान की प्राकृतिक छटा, मनोरम वातावरण, पर्वत पर फैली हरियाली, रेत के पहाड़ एवं कल-कल बहते झरने तथा आयुर्वेद की महत्वपूर्ण दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भंडार को देखकर वर्तमान में यह किसी पर्यटक स्थल से कम नजर नहीं आता है। सौमेरीमाता मंदिर क्षेत्र को ईको टूरिज्म के रूप में विकसित करने लिए राशि स्वीकृत करने के लिए लोगों ने विधायक रतन देवासी आभार जताया।

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