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Tuesday 27 July 2010

बरसे इंद्र, झूमे धरती और झरने

पेड़ पौधा झील झरना गुलसितां बाकी रहे
इन परिंदों के लिए यह आसमां बाकी रहे

कवि राजेंद्र पासवान की यह पंक्तियां इन दिनों क्षेत्र में धरती के शृंगार पर सटीक बैठती हैं। इंद्र देव की मेहरबानी से इन दिनों धरती का सौंदर्य मन को भा रहा है और लोग खुश नजर आ रहे हैं। पिछले तीन दिन की बरसात के बाद क्षेत्र में कई जगहों पर झरनों का बहना शुरू हो गया है। जिसके कारण आस पास के कई स्थानों पर अब लोग पिकनिक मनाने पहुंच रहे हैं। सोमवार को हालांकि बारिश का दौर थम तो गया, लेकिन मौसम काफी सुहाना रहा। उपख्ंाड के सौमरा माताजी के पहाड़ से निकल रहे झरने अब कल कल करते हुए बह रहे हैं। मात्र एक सप्ताह पहले तक ही यहां तेज धूप के कारण आने का मन नहीं करता था और अब यह मनोरम स्थल बन गया है। 

रविवार की सुबह शुरू हुए झरनों से आस पास का माहौल भी खुशनुमा हो गया है। कोयल की कूंक, मेंढ़क की टर्र-टर्र व मोर की पीहू की मधुर आवाज यहां कुछ समय के लिए ठहरने को मजबूर करती है। चार साल के बाद शुरू हुए झरनों को देखने के लिए ग्रामीण जुट रहे हंै। पक्षियों का कलरव मन को आनंदित कर देता है। पहाड़ की शीर्ष पर स्थित प्राचीन जलाशय भी लबालब हो गया है। छोटे झीलनुमा इस जलाशय की धार्मिक महत्ता है। इसके दर्शन के लिए भी काफी श्रद्धालु उमड़ रहे है। पहाड़ की तलहटी पर स्थित एनिकट भी रविवार की बरसात से ओवरफ्लो हो गया है। इसी तरह सिलासन गांव के सिलेश्वर मंदिर में भी श्रद्धालु दशनार्थ उमड़ रहे है। इसके अलावा सुंधामाता, खोडेश्वर मंदिर, उचमत, झरड़ाजी के स्थान से भी झरनें बहने से लोगों का जमावड़ा होने लगा है।

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