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Wednesday 8 December 2010

धोरों की धरती पर देश-विदेशी के परिंदे

रानीवाड़ा!
सुंधा पर्वत का आंचल इन दिनों कई विदेशी पक्षियों के कलरव से गूंज रहा है। इस बार हुई अच्छी बारिश ने इस इलाके को हरियाली से आच्छादित कर दिया और अब इसी हरियाली चादर में कितने ही पंछियों ने अपने आशियाने बना लिए हैं। इन मेहमान पक्षियों के आशियाने भी ऐसे होते हैं कि बस, देखते ही रह जाएं। कोई ऊंचे पेड़ पर मोटे से तने में तो कोई झाडिय़ों पर तिनके का बिछौना बनाए बैठा है। किसी किसी को धोरों की माटी से भी प्यार है तो उन्होंने छोटी छोटी घास में ही अपना डेरा डाला है। दिन भर यहां से वहां ऊंची उड़ाने भरने और चहकने के बाद ये पंछी रात को इन घोंसलों में जा दुबकते हैं।

विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों के मनभावक कलरव से इन दिनों रेतीले धोरे गुंजायमान हो रहे है। विशेषकर किंगफिशर चिडिय़ा यहां लोगों का मन मोह रही है। एक देश से दूसरे देश हजारों किलोमीटर की यात्रा, ना जाने कितनी ही सीमाओं, नदियों और जंगलों को पार कर ये नन्हें मेहमान इन दिनों सुंधा क्षेत्र के खास बने हुए हैं। परदेश से उड़कर सुंधांचल में आने वाले परिन्दों में एक है, पतिरंगा। लंबी चोंच वाली इस चिडिय़ा को अंग्रेजी में ब्लू चीवड बी इटर्स कहते हंै। इस चिडिय़ा की लम्बाई एक फीट होती है। काफी तादाद में ये चिडिय़ां मरुस्थल सहित सुंधांचल में सुकळ नदी के दोनों किनारों पर पड़ी मिट्टी में घोंसला बनाती हैं और अंडे देती हैं। यहां पाए जाने वाले कीड़े-मकोड़ों को ये अपना आहार बनाती हंै। इनमें से काफी प्रजातियां भारतीय हैं जो देश के विभिन्न हिस्सों से यहां आती है और एक विदेशी प्रजाति पतिरंगा विदेशों से यहां आती है। अभी भी यहां कई ऐसे पक्षी हैं जिनकी पहचान नहीं की जा सकी है।

कई जातियां हंै प्रवास पर

सुकळ नदी क्षेत्र में पतिरंगा चिडिय़ा के अलावा किंगफिशर चिडिय़ा काफी तादाद में देखने को मिल रही है। क्षेत्र में गर्मियों में आई बया चिडिय़ा अब यहां से उडऩे की तैयारी कर रही है। सुंधांचल में आने वाले अन्य प्रवासी पक्षी हंै- फ्लाईकेचर, गोल्डन औरियल, कामोरेंट, मोरहंस जैकाना, ग्रैट स्पोटेड ईगल, किंगफिशर हेरोइन, आइबिस और क्रेन। यहां आने वाले भारतीय पक्षियों में पनकौआ, कौआक, खेरा, काला बाज, जांघिल, घोंचिल, गिरिया, पिट्टो, नीलकण्ठ, छोटा बाबुई बटन, गजपाउन, जंगली मैना, व्यामिनी मैना और उल्लू प्रमुख हंै। इन पक्षियों में प्रकाश का अनुभव करने व वातावरण में फैली गंध से परिचय स्थापित करने की भी बेजोड़ क्षमता होती है। ये पक्षी महक की अनुभूति के सहारे अपने घोंसलों तक आसानी से पहुंच जाते हैं। ये बहुत मंद ध्वनि सुनने में निपुण होते हैं। इनसे परिचय स्थापित कर ये अपना मार्ग बिना भटके ढूंढ लेते हंै।

पर्यटन की भारी संभावनाएं

ञ्चजिले को गोडवाड़ टूरिज्म सर्किट में जुड़वाने की तैयारी शुरू कर दी है। बाद में जिले में देशी-विदेशी पर्यटकों का आना शुरू हो जाएगा। सुंधांचल में पर्यटन की विपुल संभावनाएं है। इसके और भी बढ़ावे के प्रयास किए जाएंगे।

- रतन देवासी, विधायक रानीवाड़ा

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