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Sunday 14 March 2010

ग्लेंडर बिमारी को लेकर अश्वपालकों में भय व्याप्त

रानीवाड़ा।
प्रदेश में अश्वों की दुर्लभ मानी जाने वाली मालानी नस्ल के अश्वपालकों के लिए बुरी खबर है। अश्वों में विदेशी बिमारी ग्लेंडर का देश में प्रवेश हो गया है। अश्वों व अश्वपालकों के लिए जानलेवा मानी जाने इस बिमारी के चपेट में छत्तीसगढ़ के पांच अश्व आ गए है। कभी भी इस बिमारी का प्रदेश में भी आगाज हो सकता है। राज्य सरकार इस घटना से अनभिज्ञ कुंभकर्णी नींद में सो रही है। अभी बाड़मेर में तिलवाड़ा मेला पूरे यौवन पर चल रहा है। इस मेले में एक हजार से ज्यादा अश्व विभिन्न प्रदेशों से भाग ले रहे है। इसी माह के अंत में जिले के सेवाडिय़ा व सांचौर पशु मेले भी आयोजित होने है। एक भी संक्रमित अश्व के आने पर यह बिमारी विकराल रूप ले सकती है। गौर करने वाली बात यह है कि संक्रमित अश्व के साथ उसके मालिक को भी यह बिमारी लग जाती है। पशुपालन विभाग की बात माने तो इस बिमारी का अभी तक कोई ईलाज नही है। प्रदेश में सर्वाधिक अश्व झालावाड़ में फिर जालोर जिले में पाए जाते है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक ग्लेंडर रोग को अभी तक विदेशी ही माना जाता रहा है। केन्द्र सरकार ने भी दुर्लभ नस्ल के सरंक्षण को लेकर अश्वों को देश से बाहर ले जाने पर पाबंदी लगा रखी है। छत्तीसगढ़ के रायपुर में ५ मार्च को पांच अश्वों में इस बिमारी के लक्षण देखे जाने पर इनके खून के नमूनें हरियाणा के हिसार स्थित नेशनल रिचर्स सेंटर ऑफ इक्विंस भेजे गए, जहां उनके नमूनें पोजीटिव पाए गए। घटना की जानकारी मिलने पर पूरे देश के अश्वपालकों में अज्ञात भय देखा जा रहा है। जबकि प्रदेश की राज्य सरकार का रवैया अश्वपालकों के लिए चिंताजनक है।
एक साल लगा था प्रतिबंध:- गत वर्ष प्रदेश के अश्वों में इक्वाईन होर्स सिकनेस जैसी बिमारी फैली थी, तब राज्य सरकार ने एक वर्ष तक अश्व प्रतियोगिताओं के आयोजन पर प्रतिबंध लगाया था। इस बिमारी का ईलाज था, बाद में उस पर नियंत्रण कर लिया गया। परंतु ग्लेंडर बिमारी के मामले में राज्य सरकार का रवैया अश्वपालकों के हित में नही देखा जा रहा है। राज्य सरकार को सही समय पर अश्वपालकों को सावचेत करना चाहिए ताकि भारी नुकसान से बचा जा सके।
क्या है ग्लेंडर:- अश्वों के लिए घातक संक्रामक बिमारी है। यह बिमारी एक्टीनो बेसीलस मैलाई नामक बैक्टिरीया से फैलती है। बाद में यह जीवाणु मानव को संक्रमित कर लेता है। इस बिमारी के संक्रमण के आने के बाद अक्सर अश्व को मार दिया जाता है। अभी तक यह बिमारी अमेरिका, ब्रिटेन, कनाड़ा में ही पाई जाती थी परंतु अब इसका प्रसारण एशिया व दक्षिण अमेरिका में भी हो गया है।
लक्षण:- संक्रमित अश्व में तीन प्राथमिक लक्षण देखे जा सकते है। सर्वप्रथम अश्व की नासिका की झिल्ली में संक्रमण, श्वसन तंत्रिका पर प्रभाव डालकर फेफड़ों में अवरोध व चर्म संक्रमित होकर सडऩे लग जाती है। आंतों में अल्सर हो कर रस्सी हो जाती है। बिमारी की अंतिम स्थिति को फर्सी कहा जाता है। अंत में अश्व को मारना ही पड़ता है।
इनका कहना:-
इस बिमारी के बारे में राज्य सरकार से निर्देश नही मिले है, निर्देश मिलने पर जिले में आयोजित होने वाले सेवाडिय़ा व सांचौर पशु मेलों में भाग लेने वाले अश्वों के बारे में निर्णय लिया जाएगा।
- डॉ.गंगासिंह जैतावत, उपनिदेशक, पशुपालन विभाग जालोर।
यह बिमारी जानलेवा है, एक भी संक्रमित अश्व के मेलों में आने पर हालात भयानक हो सकते है। गत वर्ष इक्वाईन होर्स सिकनेस के चलते सरकार ने एक साल तक अश्वों की प्रतियोगिताओं पर प्रतिबंध लगाया था।
- डॉ. मुकेश पटेल, प्रभारी पशु चिकित्सक मालवाड़ा।
यह बिमारी राज्य में भी आ सकती है, अश्वों के सरंक्षण के प्रति सरकार जागरूक नही है। मालानी नस्ल के बचाव को लेकर विभाग को संवदेनशील होकर निर्णय लेना चाहिए।
- गौरव कुमार, अश्व प्रेमी जोधपुर।

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