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Saturday 27 February 2010

पंखु का विजयी सफर

रानीवाड़ा.'असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो, क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो। जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम, संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम। कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होतीÓ प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निरालाÓ की यह पक्तियां सुणतर क्षेत्र की होनहार बालिका पंखु देवासी के हुनर और काबीलियत की ओर इशारा करती है। समिति के रतनपुर गांव के रेबारी परिवार में जन्मी इस होनहार बालिका ने प्राथमिक विद्यालय से ही खेलकूद प्रतियोगिताओं में अपना लोहा मनवाने में कोई कमी नहीं रखी थी।

पंखु का विजयी सफर

पंखु ने जिला स्तरीय प्रतियोगिता की तश्तरी फेंक, गोला फेंक व बाधा दौड़ प्रतियोगिताओं से अपना विजयी सफर शुरू किया। २००८ में एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की ओर से मैसूर में आयोजित नेशनल कॉॅम्पीटीशन में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसी वर्ष जुलाई २००८ में पूना में आयोजित ५३वें नेशनल गेम्स में तश्तरी फेंक प्रतियोगिता में अव्वल रहीं। जनवरी २००८ में कोलकता में आयोजित स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के तहत हुई प्रतियोगिता में १४ वर्ष वर्ग में तश्तरी फेंक प्रतियोगिता में भी अव्वल रहकर जिले सहित पूरे राजस्थान का नाम रोशन किया। नवंबर २००९ में अमृतसर (पंजाब) में आयोजित ५५वीं नेशनल प्रतियोगिता में ५वां स्थान प्राप्त किया। इसी तरह नवबंर २००९ में झालावाड़ में आयोजित ५४वीं स्टेट लेवल प्रतियोगिता में भी प्रथम स्थान प्राप्त किया। इससे पूर्व २००५ में डूंगरपुर, २००६ में गंगानगर व २००८ में सिरोही मे आयोजित प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिताओं में ८० मीटर बाधा दौड़, गोला फेंक व तश्तरी फेंक प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त कर जिले का नाम रोशन किया है। जिले की यह ऐसी प्रथम बालिका है, जिसने अपने नाम इतने खिताब अर्जित करने में सफलता हासिल की है। देवासी ने अपनी सफलता का श्रेय अपने शारीरिक शिक्षक रमेश चौधरी को दिया है। चौधरी के कुशल प्रशिक्षण से ही वो आज इस मुकाम तक पहुंच पाई है। साथ ही अशिक्षित परिवार से होने के बावजूद परिजनों ने भी उसे प्रोत्साहित किया। देवासी का लक्ष्य एशियाड गेम्स में भाग लेकर जिले सहित पूरे देश का नाम रोशन करना है, लेकिन पारिवारिक पृष्ठ भूमि व कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते लक्ष्य तक पहुंचना कांटों भरी राह में चलने जैसा है। - राव गुमानसिंह

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