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Sunday 7 March 2010

सुणतर का आलू पहुंचेगा कनाडा



रानीवाड़ा।
सुणतर क्षेत्र के जाखड़ी ग्राम का आलु अब कनाड़ा जाने की तैयारी कर रहा है। केंद्र सरकार के द्वारा कान्ट्रेक्ट फार्मिंग योजना शुरू होने से ही इस कार्य को अमलीजामा पहनाया जा रहा है। यह कार्य जाखड़ी के प्रगतिशील व शिक्षित किसान महेंद्रसिंह पुत्र वनेसिंह देवड़ा ने कर दिखाया है। इतना ही नही तीन महिने में तीनगुनी कमाई कर क्षेत्र के किसानों के लिए प्रगति की नई राह दिखाने में सफलता प्राप्त की है।
कैसे हुई शुरूआत - कनाड़ा की मैक्कन कंपनी जिसका विश्व के आलु उत्पादन क्षेत्र में पांच प्रतिशत एकाधिकार है, उससे कॉन्टेक्ट फार्मींग का एग्रीमेंट कर डेढ हैक्टर जमीन में कंपनी का बीज लगाकर क्षेत्र में प्रथम प्रयोग किया। कंपनी के द्वारा प्रमाणित बीज को कंपनी के अधिकारियों की देख-रेख में जाखड़ी के देवड़ा कृषि फार्म में नवबंर माह में बुवाई की गई। अनूकुल भोगोलिक जलवायु होने की वजह से डिसा, गुजरात को भी आलु के उत्पादन में जाखड़ी ने पीछे छोड दिया। वहां एक किलो आलु की बुवाई से दस किलो आलु पैदा होते है, वही जाखड़ी में १४ किलो आलु पैदा हुए है। वजन में यहां का आलु औसतन चार सौ से छ: सौ ग्राम के बीच माना गया है, जोकि अति उत्तम क्वालिटी है।
कांन्टे्रक्ट की शर्ते - जाखड़ी में कंपनी ने किसान को साढे पांच रूपए किलों की दर तय की। इस दर से कंपनी किसान से यह आलु खरीद कर कनाड़ा सहित दौ सौ देश में निर्यात करेगी। यदि किसान इस आलु को ज्यादा दर पर बाजार में बैचना चाहे तो भी कंपनी के द्वारा इसकी छुट दी गई है। यदि बाजार में साढे पांच रूपए की दर से भी कम दर चल रही है, तो भी कंपनी किसान को निर्धारित दर अर्थात साढे पांच रूपए प्रतिकिलो भाव ही देगी। आलु की पैदावार की बुवाई व निकासी सहित ट्रांसपोटेशन का व्यय भी कंपनी ही करेगी। पैकेजिंग सामग्री भी कंपनी के द्वारा किसान को दी जाएगी।
क्या है खासियत - इस आलु में शर्करा की मात्रा कम होने के कारण स्वाद में फीका है। मधुमेह के मरीजों के लिए यह आलु कम नुकसानदायक माना जाता है। इसलिए इस आलु को मैकन कंपनी फं्रेच फ्राई व फिंगर चिप्स का रूप देकर विश्व की पांच सितारा होटलों में सप्लाई करती है। कंपनी की दौ सौ देशों में शाखाए है। इस किस्म के आलु की फसल में रोग नही लगने से किसानों को राहत महसूस होती है, साथ ही खरपतवार से भी छुटकारा मिलता है। फसल को मिनी स्प्रिकंलर सिस्टम से सिंचाई की जाए, तो बेहतर पैदावार प्राप्त होती है। किसान ने इस फसल को तैयार करने में एक लाख रूपए खर्च किए, उसकी एवज में उसको तीन माह में चार लाख रूपए की प्राप्ति हुई है। किसान के लिए यह पैदावार बेहद लाभदायी है। भविष्य में जाखड़ी सहित सुणतर क्षेत्र के काफी किसान इस फसल की तरफ आकर्षित हो रहे है। फसल की निकासी के बाद इसी जगह जायद का बाजरा बोने से किसान को अच्छी निकासी होती है।

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