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Sunday, 6 June 2010

अतिक्रमण की चपेट में सुकल नदी

रानीवाड़ा

किसी समय अच्छी बारिश और जलस्रोतों में पर्याप्त पानी होने से क्षेत्र कभी बहुफसली इलाके के रूप में विख्यात मारवाड़ का कश्मीर सुणतर क्षेत्र अब सूखे का दंश झेल रहा है। सूखे के हालात और औसत से कम बारिश के चलते यहां बहने वाली बारहमासी सुकल नदी तट के आसपास का क्षेत्र फसल तो दूर बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहा है। क्षेत्र के लगभग सभी गांव लघु नदियों के किनारे बसे हुए हैं। पूर्व में सामान्य बरसात होने से हर वर्ष नदी में पानी की आवक रहने से आसपास के किनारों पर आबाद सैकड़ों की संख्या में कृषि कुएं पानी से लबालब रहते थे। खरीफ की फसल लेने के बाद यहां पर जीरा, रायड़ा, गेहूं, इसबगोल आदि भरपूर फसलें होती थीं। अब कुएं सूख जाने एवं प्रकृति में बदलाव आने से बहुफसली तो दूर एक फसल भी किसानों को नसीब नहीं हो रही है।

सुकल बचाओ

सुकल नदी से क्षेत्र के लगभग सभी गांवों में ग्रामीणों को पर्याप्त मात्रा में पेयजल उपलब्ध होता था। नदी में पानी नहीं आने से कुएं सूख गए। अब यहां के किसान सुकल नदी में पानी का प्रवाह बरकरार रखने के लिए लामबद्ध होने लगे है। नदी में सैकड़ों बीघा भूमि पर प्रभावशाली लोगों ने कथित पेटा कास्त आवंटन के नाम पर अवैध कब्जा कर रखा है, जिससे नदी में जल का प्रवाह रुक गया है। दर्जनों गांवों के लोगों के हलक भी इसी नदी के पानी से तर हो रहे हंै। नदी किनारे भाटवास गांव से पाइपलाइन से रानीवाड़ा में पेयजल मुहैया कराया जा रहा है। ऐसे में नदी को संरक्षित नहीं किया गया तो भविष्य में लोगों को काफी ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ेगा।

नदी को समय रहते अतिक्रमण से बचाया नहीं गया तो ऐतिहासिक सुकल नदी लुप्त हो जाएगी। सरकार को इस मामले को गंभीरता लेते हुए कार्रवाई करनी होगी।

- कृष्णकुमार पुरोहित, किसान, रोड़ा

क्षेत्र की जीवन रेखा सुकल नदी ही है। इस नदी के कारण ही क्षेत्र में थोड़ी बहुत हरियाली बची है। सरकार इस नदी को संरक्षित कर जल प्रवाह को बचाने के लिए उपाय करे तो नदी एक बार फिर पुराने स्वरूप में आ सकती है।

- बाबूलाल चौधरी, सरपंच ग्राम पंचायत, बडग़ांव

कम बारिश के चलते क्षेत्र की एक मात्र बारहमासी सुकल नदी का अस्तित्व भी अब खतरे में है। कभी कल कल कर बहने वाली यह नदी निरंतर अपना वजूद खोती जा रही है। जगह-जगह बांध बनने से पानी की आवक बंद हो गई, वहीं बड़ी तादात में कृषि कुंए खुद जाने व पानी का अत्यधिक दोहन होने से भू-जल स्तर भी रसातल पहुंच गया है।

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