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Wednesday 15 December 2010

रानीवाड़ा में मास्टर प्लान के लिए शुरू हुआ सर्वे

रानीवाड़ा
शहर के सौंदर्यकरण और नवनिर्माण को लेकर मंगलवार से सर्वे कार्य शुरू हुआ। इस दौरान विधायक रतन देवासी भी मौजूद थे और उन्होंने इसके लिए आवश्यक दिशा निर्देश भी दिए। सर्वे के तहत कस्बे में विभिन्न आधारभूत सुविधाओं के विस्तार के साथ ही आगामी दस वर्ष की योजनाओं और जरूरतों को ध्यान में रखकर प्लानिंग तैयार की जाएगी।

कंपनी के इंजीनियर भैरूसिंह सांखला ने बताया कि ग्राम पंचायत रानीवाड़ा कलां द्वारा करवाए जा रहे इस सर्वें में सड़कों की भौगोलिक स्थिति, नालियों की धरातलीय आवृति, गली मौहल्लों की लंबाई एवं चौड़ाई, पुरानी नालियों का रिनोवेशन कार्य सहित पेयजल की भूमिगत पाईप लाईनों का लेवलिंग, कच्ची सड़कों की लेवलिंग, सरकारी भवनों का चिन्हीकरण, विद्युत पोलों की स्थिति और राजस्व भूमि का चिन्हीकरण के कार्य किया जाएगा। 

सरपंच गोदाराम देवासी ने बताया कि कस्बे की भौगोलिक बनावट समतलीय नहीं होकर उबड़-खाबड़ है। जिससे दूषित एवं बरसाती पानी की निकासी सूचारू रूप से नहीं हो पाती है। इस समस्या को देखते हुए विधायक रतन देवासी की अनुशंषा पर ग्राम पंचायत की निजी आय से कस्बे का बहुआयामी सर्वे कार्य करने का निर्णय लिया गया है। यह कार्य जोधुपर की फर्म हेमाराम चौधरी कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा किया जा रहा है। इसके बाद सीवरेज, डे्रनेज सहित पेयजल व्यवस्था को लेकर अलग-अलग चरण में विकास कार्य का तकमीना तकनीकी अधिकारियों के दिशा-निर्देशन में बनाया जाएगा। उन्होंने बताया कि मास्टर प्लान में विभिन्न राजनीतिक दल के प्रतिनिधियों और स्थानीय लोगों का भी सहयोग लिया जाएगा। इसके लिए गांव स्तर पर 11 सदस्यीय समिति का गठन किया जाएगा।

यह होंगे फायदे : कस्बे का मास्टर प्लान तैयार होने से कई फायदे होंगे। सबसे पहले तो इससे विकास कार्यों को एक नई दिशा मिलेगी। पूरे कस्बे की जरूरतों का आंकलन हो सकेगा। शहर में खाली पड़ी सरकारी जमीनों का सही उपयोग हो सकेगा। इसके अलावा आने वाले दस साल की जरूरतों के अनुसार अभी से योजनाएं बनाई जा सकेंगी।

- सर्वे में आवासीय, व्यवसायी योजनाओं के अलावा स्कूल, कॉलेज, होटल, सिनेमा और मनोरंजन की कई योजनाएं सम्मिलित की गई हंै। मास्टर प्लान बनाते समय इस बात का खयाल रखा गया है कि आने वाले दिनों में रानीवाड़ा एक नए स्वरुप में ढल सके।

- रतन देवासी, विधायक रानीवाड़ा

विश्व धरोहर के लिए टूट रहा जालोर का सपना

वल्र्ड हैरिटेज सूची में शामिल करने को लेकर चल रही थी जालोर दुर्ग की कवायद। राज्य के सात पहाड़ी दुर्गों में किया गया था शामिल। पुरातत्व विभाग की ओर से नियुक्त कंसलटेंट ने किया जालोर दुर्ग का निरीक्षण, पहले ही दौर में जताई जालोर दुर्ग को शामिल किए जाने पर आशंका। कहा- कई प्राथमिकताओं को पूरा नहीं करता जालोर दुर्ग। अभी सौंपी जानी है अंतिम रिपोर्ट।

कई सदियों से अपने शौर्य और इतिहास के बूते सीना तानकर खड़े जालोर दुर्ग को राजनीतिक और प्रशासनिक उदासीनता का खामियाजा भुगतना पड़ा है। वल्र्ड हैरिटेज सूची में शामिल करने के लिए राजस्थान के सात प्रमुख किलों के सर्वे के पहले ही दौर में जालोर दुर्ग की संभावनाएं कम हो गई हैं। जालोर आई सर्वे टीम ने दुर्ग में कई कमियां बताते हुए इस बात की आशंका जताई है कि शायद इसे सूची में शामिल ना किया जाए। जिससे इस एतिहासिक इमारत की विश्व एतिहासिक धरोहर के रूप में पहचान बनाने की कवायद का झटका लगा है। जंतर मंतर के बाद सरकार ने राज्य के सात किलों को वल्र्ड हैरिटेज सूची में शामिल करवाने के लिए चयन किया था। जिसमें चित्तौडग़ढ़, रणथम्बौर, कुंभलगढ़, गागरोन, बाला किला अलवर, आमेर और जालोर दुर्ग भी शामिल था। जिसके प्रथम चरण के तहत राज्य सरकार व भारतीय पुरातत्व विभाग की ओर से नियुक्त कंसलटेंट की टीम ने इन किलों का सर्वे किया। इसके बाद वह अपनी सर्वे रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपेगी। यह सर्वे टीम पिछले दिनों जालोर आकर गई है और अब अपनी रिपोर्ट अंतिम तौर पर तैयार कर रही है। ऐसे में जनप्रतिनिधियों को चाहिए कि वे इसके लिए प्रयास करें जो कमियां रही हैं उन्हें दूर कर दूसरे चरण के सर्वे में दुर्ग की संभावनाओं को मजबूत करें।
सरकार और विभाग ने करवाया सर्वे
राज्य के इन सात दुर्गों को वल्र्ड हैरिटेज सूची में शामिल करने के लिए राज्य सरकार और भारतीय पुरातत्व विभाग ने एक नीजि कंपनी की मदद से सर्वे करवाया। इस टीम ने आठ दिसंबर को जालोर दुर्ग का अवलोकन किया। राज्य सरकार की ओर से नियुक्त कंसलटेंट शिखा जैन और उनकी एक साथी ने यहां आकर पूरा दुर्ग देखा। इसके बाद इस टीम ने चितौड़ और गागरोन का किला देखा। सर्वे के लिए इस टीम ने कई मापदंड तय किए थे जिसके आधार पर इन्हें अपनी रिपोर्ट तैयार करनी थी। वैल्र्ड हैरिटेल में शामिल करने के लिए कुल दस बिंदु बनाए गए हैं। जिसमें किले की स्थापत्य कला, संस्कृति, इतिहास, शौर्य और त्याग की परंपराएं, निर्माण के बाद आए बदलाव, क्षेत्रफल, प्राकृतिक सौंदर्य, पहुंचने के लिए साधन और पर्यटकों की संख्या समेत दुर्ग की खासियत के बिंदु शामिल थे। इन सभी के आधार पर टीम ने जालोर दुर्ग के बारे में जानकारी जुटाई। इस दौरान टीम ने जैन पेढ़ी का भी अवलोकन किया।
पहले सर्वे में जालोर का झटका
टीम की ओर से किए गए पहले ही दौर के सर्वे में जालोर दुर्ग की संभावनाओं को झटका लगा है। कंसलटेंट शिखा जैन ने इसमें कई कमियां बताई हैं। भास्कर से बातचीत में उन्होंने बताया कि वल्र्ड हैरिटेज के लिए तय मापदंडों में से कई जरूरतों को जालोर दुर्ग पूरा नहीं करता है। ऐसे में इसकी संभावना कम हैं, लेकिन फिर भी हम लोग इसकी रिपोर्ट तैयार कर राज्य सरकार को सौंप देंगे। उसके बाद वहीं से तय होगा। उन्होंने बताया कि सबसे पहले तो दुर्ग तक पहुंचने के लिए सही रास्ता नहीं है। इसके बाद कई सालों से दुर्ग के सरंक्षण का काम भी नहीं हुआ। इसी प्रकार दुर्ग का क्षेत्रफल भी काफी कम है। कंसलटेंट शिखा जैन ने बताया कि सबसे बड़ी कमी तो इसकी मौजूदा हालत को लेकर है क्योंकि दुर्ग सही हालत में नहीं है। इस स्थिति में दुर्ग का सूची में शामिल होना मुश्किल है।
काश समय पर चेते होते
सर्वे टीम ने कई कमियां बताते हुए दुर्ग को वल्र्ड हैरिटेज सूची में शामिल करने की संभावनाओं से इंकार किया है। इन कमियों में सबसे बड़ी तीन कमियां सामने आई हैं। पहली कमी दुर्ग तक पहुंचने के लिए सही रास्ता नहीं है, दूसरी कमी दुर्ग का सरंक्षण नहीं है और तीसरी कमी दुर्ग की मौजूदा हालत सही नहीं है। देखा जाए तो यह तीनों कमियां जिले के जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता का नतीजा है। जालोर दुर्ग तक सडक़ निर्माण का मामला पिछले कई सालों से अटका हुआ है। पहले पूर्व विधायक जोगेश्वर गर्ग ने कई बार सडक़ निर्माण की घोषणा की और फिर मौजूदा विधायक रामलाल मेघवाल ने इसके निर्माण को लेकर आश्वासन दिया, लेकिन इन सालों में सडक़ के नाम पर काम तक शुरू नहीं हुआ। इसी प्रकार दुर्ग के सरंक्षण और इसकी हालत सुधारने को लेकर भी कभी प्रयास नहीं हुए। पूरा दुर्ग जीर्ण शीर्ण हो रखा है। जब यह तय हो चुका था कि टीम यहां आकर शीघ्र ही सर्वे करेगी तब भी प्रशासन ने यह उचित नहीं समझा कि दुर्ग की साफ सफाई करवाई जाए और इसके इतिहास के बारे में टीम को अवगत करवाया जाए।
हमारा प्रयास लौटे दुर्ग का वैभव
जालोर दुर्ग का वल्र्ड हैरिटेज सूची के लिए नाम जाना वाकई में एक बड़ी बात है, लेकिन ना तो जनप्रतिनिधियों ने और ना ही जिले के अधिकारियों ने इस संभावना को और अधिक मजबूत करने के प्रयास किए। दैनिक भास्कर ने समय समय पर जालोर दुर्ग के वैभव और इतिहास और इसकी मौजूदा हालत को लेकर समाचार प्रकाशित किए। इसी साल १६ मार्च को जग जाणे जालोर रो जस शीर्षक से और ११ सितंबर को जालोर री हौवे जय जय शीर्षक से समाचार प्रकाशित कर दुर्ग के इतिहास और सरंक्षण के लिए सभी को आगे आने की आवश्यकता जताई थी। वैल्र्ड हैरिटेज सूची के लिए नाम जाना एक अच्छा मौका है। अभी भी अंतिम रिपोर्ट सौंपी जानी है। ऐसे में जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को चाहिए कि वे इसके लिए प्रयास करें।
१० वी शताब्दी का जालोर दुर्ग
जालोर. जालोर दुर्ग का निर्माण १० वीं शताब्दी के उत्तराद्र्ध में की गई। दुर्ग पर परमार, प्रतिहार, चौहान, सोलंकियों, मुस्लिम सुल्तानों और राठौड़ नरेशों का समय समय पर अधिकार रहा। दुर्ग के सबसे प्रतापी नरेश कान्हड़देव थे। तीन वर्ष के लंबे घेरे और एक विश्वासघाती के कारण ही अलाउद्दीन की सेना इस दुर्ग में घुस पाई थी। इसके बावजूद यह सेना कान्हड़देव और वीरमदेव के वीरगति पाने के बाद और महिलाओं के जौहर के बाद ही उसकी सेना इस दुर्ग पर कब्जा कर पाई थी। यह घटना कान्हड़देव प्रबंध में वर्णित है। जालोर दुर्ग मूलत: पर्वतीय दुर्ग है। इसके निर्माण में कई विशेषताएं हैं। यह दुर्ग पूर्णतया वास्तु के सिद्धांतों पर बना है। दुर्ग गिरी और वन दोनों श्रेणियों से मिल जुल कर बना है। दुर्ग की प्राचीन प्राचीरें बड़े बड़े लिग्नाइट पत्थरों से बनी है। पहाड़ पर यह दुर्ग गोल आकृति में २९५ गुना १४५ वर्ग मीटर की परिधि में बसा है। धरातल से इसकी ऊंचाई ४२५ मीटर है। पहाड़ के नीचे से इस दुर्ग का कहीं आभास नहीं होता। कान्हड़देव प्रबंध में इस दुर्ग की भव्यता का वर्णन करते हुए कहा गया है कि इसकी कोई समानता नहीं है। पूरा दुर्ग भूल भूलैया सा है। राजप्रसादों और उनकी दीवारों की चिकनाहट तत्कालीन कला और शिल्प का नमूना है। वर्ष १२११ में दुर्ग पर उदयसिंह का अधिकार था। उस समय इल्तुतमिश ने यहां आक्रमण किया। इस आक्रमण के बाद ताज-उल-मासिर में हसन निजामी ने लिखा है, यह ऐसा किला है, जिसका दरवाजा कोई आक्रमणकारी नहीं खोल सका। सन १३०१ में अलाउद्दीन खिलजी ने तीन वर्ष के घेरे के बाद सुरंग के माध्यम से इस दुर्ग में प्रवेश किया

रिपोर्ट-- विश्वबंधु शर्मा जालोर