कई सदियों से अपने शौर्य और इतिहास के बूते सीना तानकर खड़े जालोर दुर्ग को राजनीतिक और प्रशासनिक उदासीनता का खामियाजा भुगतना पड़ा है। वल्र्ड हैरिटेज सूची में शामिल करने के लिए राजस्थान के सात प्रमुख किलों के सर्वे के पहले ही दौर में जालोर दुर्ग की संभावनाएं कम हो गई हैं। जालोर आई सर्वे टीम ने दुर्ग में कई कमियां बताते हुए इस बात की आशंका जताई है कि शायद इसे सूची में शामिल ना किया जाए। जिससे इस एतिहासिक इमारत की विश्व एतिहासिक धरोहर के रूप में पहचान बनाने की कवायद का झटका लगा है। जंतर मंतर के बाद सरकार ने राज्य के सात किलों को वल्र्ड हैरिटेज सूची में शामिल करवाने के लिए चयन किया था। जिसमें चित्तौडग़ढ़, रणथम्बौर, कुंभलगढ़, गागरोन, बाला किला अलवर, आमेर और जालोर दुर्ग भी शामिल था। जिसके प्रथम चरण के तहत राज्य सरकार व भारतीय पुरातत्व विभाग की ओर से नियुक्त कंसलटेंट की टीम ने इन किलों का सर्वे किया। इसके बाद वह अपनी सर्वे रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपेगी। यह सर्वे टीम पिछले दिनों जालोर आकर गई है और अब अपनी रिपोर्ट अंतिम तौर पर तैयार कर रही है। ऐसे में जनप्रतिनिधियों को चाहिए कि वे इसके लिए प्रयास करें जो कमियां रही हैं उन्हें दूर कर दूसरे चरण के सर्वे में दुर्ग की संभावनाओं को मजबूत करें।
सरकार और विभाग ने करवाया सर्वे
राज्य के इन सात दुर्गों को वल्र्ड हैरिटेज सूची में शामिल करने के लिए राज्य सरकार और भारतीय पुरातत्व विभाग ने एक नीजि कंपनी की मदद से सर्वे करवाया। इस टीम ने आठ दिसंबर को जालोर दुर्ग का अवलोकन किया। राज्य सरकार की ओर से नियुक्त कंसलटेंट शिखा जैन और उनकी एक साथी ने यहां आकर पूरा दुर्ग देखा। इसके बाद इस टीम ने चितौड़ और गागरोन का किला देखा। सर्वे के लिए इस टीम ने कई मापदंड तय किए थे जिसके आधार पर इन्हें अपनी रिपोर्ट तैयार करनी थी। वैल्र्ड हैरिटेल में शामिल करने के लिए कुल दस बिंदु बनाए गए हैं। जिसमें किले की स्थापत्य कला, संस्कृति, इतिहास, शौर्य और त्याग की परंपराएं, निर्माण के बाद आए बदलाव, क्षेत्रफल, प्राकृतिक सौंदर्य, पहुंचने के लिए साधन और पर्यटकों की संख्या समेत दुर्ग की खासियत के बिंदु शामिल थे। इन सभी के आधार पर टीम ने जालोर दुर्ग के बारे में जानकारी जुटाई। इस दौरान टीम ने जैन पेढ़ी का भी अवलोकन किया।
पहले सर्वे में जालोर का झटका
टीम की ओर से किए गए पहले ही दौर के सर्वे में जालोर दुर्ग की संभावनाओं को झटका लगा है। कंसलटेंट शिखा जैन ने इसमें कई कमियां बताई हैं। भास्कर से बातचीत में उन्होंने बताया कि वल्र्ड हैरिटेज के लिए तय मापदंडों में से कई जरूरतों को जालोर दुर्ग पूरा नहीं करता है। ऐसे में इसकी संभावना कम हैं, लेकिन फिर भी हम लोग इसकी रिपोर्ट तैयार कर राज्य सरकार को सौंप देंगे। उसके बाद वहीं से तय होगा। उन्होंने बताया कि सबसे पहले तो दुर्ग तक पहुंचने के लिए सही रास्ता नहीं है। इसके बाद कई सालों से दुर्ग के सरंक्षण का काम भी नहीं हुआ। इसी प्रकार दुर्ग का क्षेत्रफल भी काफी कम है। कंसलटेंट शिखा जैन ने बताया कि सबसे बड़ी कमी तो इसकी मौजूदा हालत को लेकर है क्योंकि दुर्ग सही हालत में नहीं है। इस स्थिति में दुर्ग का सूची में शामिल होना मुश्किल है।
काश समय पर चेते होते
सर्वे टीम ने कई कमियां बताते हुए दुर्ग को वल्र्ड हैरिटेज सूची में शामिल करने की संभावनाओं से इंकार किया है। इन कमियों में सबसे बड़ी तीन कमियां सामने आई हैं। पहली कमी दुर्ग तक पहुंचने के लिए सही रास्ता नहीं है, दूसरी कमी दुर्ग का सरंक्षण नहीं है और तीसरी कमी दुर्ग की मौजूदा हालत सही नहीं है। देखा जाए तो यह तीनों कमियां जिले के जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता का नतीजा है। जालोर दुर्ग तक सडक़ निर्माण का मामला पिछले कई सालों से अटका हुआ है। पहले पूर्व विधायक जोगेश्वर गर्ग ने कई बार सडक़ निर्माण की घोषणा की और फिर मौजूदा विधायक रामलाल मेघवाल ने इसके निर्माण को लेकर आश्वासन दिया, लेकिन इन सालों में सडक़ के नाम पर काम तक शुरू नहीं हुआ। इसी प्रकार दुर्ग के सरंक्षण और इसकी हालत सुधारने को लेकर भी कभी प्रयास नहीं हुए। पूरा दुर्ग जीर्ण शीर्ण हो रखा है। जब यह तय हो चुका था कि टीम यहां आकर शीघ्र ही सर्वे करेगी तब भी प्रशासन ने यह उचित नहीं समझा कि दुर्ग की साफ सफाई करवाई जाए और इसके इतिहास के बारे में टीम को अवगत करवाया जाए।
हमारा प्रयास लौटे दुर्ग का वैभव
जालोर दुर्ग का वल्र्ड हैरिटेज सूची के लिए नाम जाना वाकई में एक बड़ी बात है, लेकिन ना तो जनप्रतिनिधियों ने और ना ही जिले के अधिकारियों ने इस संभावना को और अधिक मजबूत करने के प्रयास किए। दैनिक भास्कर ने समय समय पर जालोर दुर्ग के वैभव और इतिहास और इसकी मौजूदा हालत को लेकर समाचार प्रकाशित किए। इसी साल १६ मार्च को जग जाणे जालोर रो जस शीर्षक से और ११ सितंबर को जालोर री हौवे जय जय शीर्षक से समाचार प्रकाशित कर दुर्ग के इतिहास और सरंक्षण के लिए सभी को आगे आने की आवश्यकता जताई थी। वैल्र्ड हैरिटेज सूची के लिए नाम जाना एक अच्छा मौका है। अभी भी अंतिम रिपोर्ट सौंपी जानी है। ऐसे में जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को चाहिए कि वे इसके लिए प्रयास करें।
१० वी शताब्दी का जालोर दुर्ग
जालोर. जालोर दुर्ग का निर्माण १० वीं शताब्दी के उत्तराद्र्ध में की गई। दुर्ग पर परमार, प्रतिहार, चौहान, सोलंकियों, मुस्लिम सुल्तानों और राठौड़ नरेशों का समय समय पर अधिकार रहा। दुर्ग के सबसे प्रतापी नरेश कान्हड़देव थे। तीन वर्ष के लंबे घेरे और एक विश्वासघाती के कारण ही अलाउद्दीन की सेना इस दुर्ग में घुस पाई थी। इसके बावजूद यह सेना कान्हड़देव और वीरमदेव के वीरगति पाने के बाद और महिलाओं के जौहर के बाद ही उसकी सेना इस दुर्ग पर कब्जा कर पाई थी। यह घटना कान्हड़देव प्रबंध में वर्णित है। जालोर दुर्ग मूलत: पर्वतीय दुर्ग है। इसके निर्माण में कई विशेषताएं हैं। यह दुर्ग पूर्णतया वास्तु के सिद्धांतों पर बना है। दुर्ग गिरी और वन दोनों श्रेणियों से मिल जुल कर बना है। दुर्ग की प्राचीन प्राचीरें बड़े बड़े लिग्नाइट पत्थरों से बनी है। पहाड़ पर यह दुर्ग गोल आकृति में २९५ गुना १४५ वर्ग मीटर की परिधि में बसा है। धरातल से इसकी ऊंचाई ४२५ मीटर है। पहाड़ के नीचे से इस दुर्ग का कहीं आभास नहीं होता। कान्हड़देव प्रबंध में इस दुर्ग की भव्यता का वर्णन करते हुए कहा गया है कि इसकी कोई समानता नहीं है। पूरा दुर्ग भूल भूलैया सा है। राजप्रसादों और उनकी दीवारों की चिकनाहट तत्कालीन कला और शिल्प का नमूना है। वर्ष १२११ में दुर्ग पर उदयसिंह का अधिकार था। उस समय इल्तुतमिश ने यहां आक्रमण किया। इस आक्रमण के बाद ताज-उल-मासिर में हसन निजामी ने लिखा है, यह ऐसा किला है, जिसका दरवाजा कोई आक्रमणकारी नहीं खोल सका। सन १३०१ में अलाउद्दीन खिलजी ने तीन वर्ष के घेरे के बाद सुरंग के माध्यम से इस दुर्ग में प्रवेश किया
रिपोर्ट-- विश्वबंधु शर्मा जालोर
1 comment:
Control must be handed over to Meharan garh musium trust. As this is the real property of them they will better take care compare to govt.
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