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Tuesday, 9 March 2010

सात समंदर पार सफलता की उडान


रानीवाड़ा।
"उड़ान भरो अपने विचारों के साथ, उड़ान भरो अपने प्रेम के बल। मरुस्थलों के पार, समुद्रों और पर्वतों के पार, मात्र एक सांस में पहुंच जाते हो तुम" रूस के प्रसिद्ध कवि येलेना रेरिख की यह पंक्तियां रानीवाड़ा तहसील के सेवाड़ा निवासी होनहार युवक डा. प्रकाशचंद्र विश्रोई पर सटीक बैठती है। सेवाड़ा के धोरों में पलकर बड़ा होने वाला यह युवक अपने बलबूते पर सात समंदर पार स्वीडन देश में टेक्रोलॉजी विषय में डॉक्टरेट कर यूरोपीयन स्पेस एजेंसी में प्रोजेक्ट लीडर के रूप में रिचर्स कर रहे है।
सेवाड़ा गांव के अध्यापक हरीशचंद्र विश्रोई जो अभी आहोर में कार्यरत है। उनके घर जन्म लेने वाले प्रकाश ने प्राथमिक शिक्षा गांव से प्राप्त कर हाई स्कूल नवोदय विद्यालय जसवंतपुरा से डिक्टेशन मार्क के साथ उत्तीर्ण करने में सफलता प्राप्त की। बचपन से ही होनहार व हमेशा कक्षा में प्रथम रहने वाले प्रकाश ने बिट्स पिलानी से 2002 में माईक्रो इलेक्ट्रोनिक्स विषय में पीजी डिग्री कर कुछ समय तक जयपुर की इंजीनियरिंग कॉलेज में व्याख्याता पद पर कार्य किया। बाद में जनवरी 2003 से अगस्त 2004 तक सेन्ट्रल इलेक्ट्रोनिक्स इंजीनियरिंग रिचर्स इस्टीट्यूट में रिचर्स इंजीनियर के रूप में कार्य किया। इससे पूर्व उन्होंने इसरो में भी ट्रेनी इंजीनियर के रूप में अपनी सेवाए दी। बाद में भारत सरकार की फैलोशिप योजना के तहत प्रकाश का चयन 2007 में ऑप्टो इलेक्ट्रोनिक्स विषय में शोध करने के लिए स्वीडन की चालमर्स यूनिवर्सटी ऑफ टेक्रोलॉजी में चयन हुआ अभी प्रकाश स्वीडन में यूरोपीयन स्पेस एजेंसी में प्रोजेक्ट लीडर के रूप में रिचर्स कर रहे है।
उपलब्धियां - स्वीडन सरकार के द्वारा स्थाई नागरिकता प्राप्त विश्रोई को 2009 में चालमर्स इनोवेशन अवार्ड से नवाजा गया। सनï् 2008 में स्वीडिस यंग सांईटिस्ट अवार्ड, 2007 में स्वीडिस सीडा फैलोशिप अवार्ड लेकर प्रकाश ने देश का नाम रोशन किया है। इसी तरह सनï् 2001 में केट फैलोशिप, दिसम्बर 2002 में विश्वविद्यालय स्तर पर एकाडमी अवार्ड के रूप में स्वर्ण पदक व 2002 में आईआईटी कानपुर ने टेक्रनिकल पेपर प्रजेन्टेशन कॉन्टेस्ट के रूप में प्रथम ईनाम लेकर जिले का नाम रोशन किया।
श्रेय - विश्रोई ने अपनी सफलता का श्रेय अपने पिता हरीशचंद्र विश्रोई व माता ब्रिजबाला विश्रोई को दिया है। विश्रोई का मानना है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्र में प्रतिभाओं की कोई कमी नही है। जरूरत है उन्हें प्लेटफार्म व उचित मार्गदर्शन की। विश्रोई का अनुज निलेश विश्रोई भी जयपुर से सी.ए. का अध्ययन कर रहा है। वर्तमान में विश्रोई स्वीडन देश के गोटेबोर्ग में ऑप्टो इलेक्ट्रोनिक्स में शोध कर रहे है। इस विषय के तहत विश्रोई एक्स-रेज, गामा रेज, पेराबेंजिन-रेज पर अध्ययन कर रहे है। साथ ही प्रकाश व विद्युत पर इन किरणों के द्वारा पडने वाले प्रभाव पर भी रिचर्स कर रहे है।
अंत में प्रकाश पर कवि अज्ञेय कि निम्र पंक्तियां कही जाए, तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी, "उड़ चल हारिल लिये हाथ में, यही अकेला ओछा तिनका। उषा जाग उठी प्राची में कैसी बाट, भरोसा किन का"।

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