मेहमान पक्षी के लौटने के बाद घरों की शोभा बढ़ाते हैं उसके घोंसलें
रानीवाड़ा (जालोर)
एक एक तिनके को बारीकी से चुनकर उससे भी कहीं अधिक कठिन परिश्रम के बाद बहुत ही खूबसूरत घरौंदा बनाने वाली बया ने इन दिनों क्षेत्र के कई गांवों में डेरा डाला है। बारीकी से अपना घोंसला बनाने वाले इस पक्षी को इसी कला के कारण दर्जी पक्षी यानी कि टेलरबर्ड भी कहा जाता है। क्षेत्र में इनका पड़ाव दो माह का होता है। इस दौरान ये पेड़ पर घोंसला बनाकर प्रजनन भी करती है। इनके घोंसलों की बनावट काफी जटिल होती है।
समय की पाबंद : मारवाड़ी में 'सुगरीÓ हिंदी में 'दर्जी चिडिय़ाÓ अथवा 'बयाÓ तथा अंग्रेजी में 'टेलर बर्डÓ के नाम से प्रसिद्घ यह चिडिय़ा समय की पाबंद है। वो हर वर्ष नीयत समय पर आती है। इस वर्ष भी समय की पाबंद यह मेहमान चिडिय़ा यहां पहुंची है। सुगरी ने अपने साथी के साथ खेतों में ऊंचे दरख्तों पर घोंसला बनाना शुरू कर दिया है जो देखने में वाकई में बहुत खूबसूरत लगते हैं।
पड़ाव अर्थात प्रजनन काल : किसान कांतिलाल मेघवाल ने बताया कि सुगरी हर वर्ष मई की शुरूआत में यहां आ जाती है। कुछ ही दिनों यह घोंसले का निर्माण कर लेती है। घोंसला बनाने की भी इनकी अलग कला है। इस दौरान मादा सुगरी अंदर से व नर सुगरी घोंसले के बाहर से एक—एक तिनका पिरोती हैं। जून के प्रथम सप्ताह में सुगरी अंडे देती है। इस समय मादा सुगरी ने अंडे देना शुरू कर दिया है। अंडा देने के बाद नर सुगरी घोंसले में प्रवेश नहीं कर बाहर से ही अंडे की सुरक्षा करता है।
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