रानीवाड़ा
सुणतर क्षेत्र की अनुकूल जलवायु के चलते ताईवान देश के पपीतों की यहां के खेतों में अच्छी पैदावार हो रही हंै। कृषि विभाग व जागरूक किसानों ने मिलकर यह अजूबा यहां कई गांवों में कर दिखाया है। पपीते की परंपरागत खेती के बनिस्पत ताईवानी खेती किसानों के लिए लाभप्रद देखी जा रही है। धानोल निवासी रमेशकुमार चौधरी ने तीन वर्ष पहले परंपरागत खेती में हटकर नई तकनीक के कई प्रयोगों की शुरूआत की थी। अभी निकटवर्ती भाटवास में चौधरी ने सैकड़ों बीघा जमीन में यह प्रयोग कृषि विभाग के सहयोग से किया है। जो शतï-प्रतिशत सफल रहा है।
किसानों के लिए वरदान : सहायक कृषि अधिकारी कन्हैयालाल विश्नोई ने बताया कि यह किस्म रानीवाड़ा क्षेत्र किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। एक हैक्टेयर में किसान इस फसल से चार लाख रुपए की नकद कमाई कर रहे हंै। क्षेत्र के किसान जुलाई माह में गुजरात की नर्सरियों से दस रुपए प्रति पौधे के हिसाब से खरीद कर खेतों में बुवाई करते हैं, जबकि देशी पपीते को किसान खुद ही बीज द्वारा तैयार करते हैं। इस फसल को ड्रीप ईरिगेशन सिस्टम द्वारा सिंचित किया जाता है। जिससे पानी की अच्छी बचत हो रही है।
देसी व ताईवानी किस्म की तुलना
दे शी पपीते का स्वाद फीका या कम मीठा होता है, वहीं ताईवानी पपीता स्वादिष्ट व काफी मीठा होता है। जहां देशी पपीते के दो या तीन दिन में खराब होने की संभावना रहती है, वहीं विलायती किस्म आठ से दस दिन तक खराब नहीं होती है। इस खासियत के चलते किसान पपीते को दिल्ली, मुंबई सहित देश के अन्य भागों में भी भेज रहे हैं। देशी पपीते के पेड़ पर ४०-५० किलो फल लगते हैं वहीं ताईवानी पेड़ पर ७०-८० किलो फल प्राप्त होते हंै।
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