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Thursday 24 December 2009

जीरे पर ग्लोबल वार्मिंग का असर

गुमानसिंह राव रानीवाड़ा
सुणतर क्षेत्र में इस बार मानसून की रुसवाई व तापमान में आ रहे उतार चढ़ाव के कारण 25 प्रतिशत कृषि भूमि पर ही रबी की फसल बोई जा सकी। जानकारी के अनुसार इस बार ३२०० हैक्टेयर भूमि पर ही जीरे की फसल की बुवाई की गई है। जबकि गत वर्ष ४२०० हैक्टेयर भूमि पर बुवाई की गई थी।

क्षेत्र के खेतों में ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव देखने को मिल रहा है। तापमान में लगातार आ रहे उतार चढ़ाव के कारण फसलें अभी पूरी तरह से पक नहीं पा रही हंै। कृषि अधिकारियों का कहना है कि जब तक तापमान और अधिक नीचे नहीं आ जाता है तब तक फसलों को सुरक्षित रख पाना मुश्किल है। क्षेत्र के गांवों में अगर मौसम के तेवर यही रहे तो गेहूं, जौ, सरसों व जीरे की फसल को भारी नुकसान पहुंच सकता है। रबी की फसल नवंबर के अंत तक पूरे यौवन पर आ जाती है, लेकिन लगातार तापमान में आ रहे उतार-चढ़ाव के कारण खेतों में फसलें अभी भी पक नहीं पाई हैं। कृषि अधिकारियों का मानना है कि तापमान में जितनी गिरावट आएगी उतना ही फसलों को लाभ मिलेगा। इधर, जिले का अधिकांश किसान जीरे पर ही निर्भर है। ऐसे में उसकी आश भी जीरे को लेकर ही है। क्या है इस समय जीरे का हाल और क्या चल रहे हैं भाव। अभी और कैसे बचाया जा सकता है जीरे को पेश है एक रिपोर्ट।
ऊंझामंड़ी का रूझान
जीरे की अंतर्राष्ट्रीय ऊंझा मंडी के प्रसिद्ध एक्सपोर्टर बाबुभाई शाह के अनुसार भारत में इस समय अग्रिम स्टॉक करीब 7 लाख बोरियों का है। वर्तमान में बाजार बहुत उतार-चढ़ाव वाला है। कीमतें स्थिर नहीं हैं और कारोबारी पुराने स्टॉक पर मुनाफा वसूली में लगे हुए हैं। ऊंझा में बेहतरीन क्वालिटी के 20 किलोग्राम जीरे का मूल्य 2,100-2,150 रुपये पहुंच गया है, जबकि खराब क्वालिटी के जीरे की कीमत 1,800 से 1,850 रुपये है। ज्यादातर जीरा कारोबारियों का मानना है कि मध्य फरवरी के बाद ही स्थितियां और ज्यादा स्पष्ट हो पाएगी। जब नई फसल बाजार में आ जाएगी।
उन्नत किस्म
आर एस 1, एस 404, आर जेड 19, एम् सी 43, एम् यू सी, यू सी 198, एन पी डी 1, एन पी जे 126, सेलेक्शन 7-3, गुजरात जीरा 3 आदि।
जलवायु
जीरा ठंडे मौसम की फसल है, वानस्पतिक वृद्धि के लिए ठंडे मौसम परन्तु फूल आने और बीज पकने के समय उच्च तापमान और लम्बी प्रकाश अवधि वाले दिन उत्तम रहते हैं।
बीज की मात्रा
बीज का जीरा उत्पादन में विशेष महत्व है, इसकी अधिक उपज लेने के लिए बीज की पर्याप्त मात्रा बोनी चाहिए, आमतौर पर 20 किलो बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है।
जीरे के प्रमुख रोग एवं नियंत्रण
जीरे की फसल में मुख्यत: झुलसा रोग जिसमे पौधे की वृद्धि रुक जाती है और पौधा सूखने लगता है, अंगमारी जिसमे पौधा मुरझा जाता है, उसपर सफेद धब्बे आ जाते है और टहनियां नीचे की ओरे झुक जाती है, चूर्णी फफूंद जिसमे पौधे में सफेद चूर्ण सा लग जाता है प्रभावित करती हैं। इनकी रोकथाम के लिए 250 मिली लीटर नीम पानी, 25 मिली लीटर माइक्रो झिम प्रति पम्प मिलाकर अच्छी तरह से तर बतर कर छिड़काव करें इसके अलावा सुपर गोल्ड मैग्नीशियम 1 किलोग्राम प्रति एकड़ पानी में घोल कर छिडकाव करें। नीम पानी बनाने के लिए 25 किलो नीम की ताजी पत्तियों को 50 लीटर पानी में पकाए जब वह 20-25 लीटर रह जाए तब छानकर उपयोग करना चाहिए।
किसान अपनाएं फव्वारा पद्धति
ञ्चतापमान में गिरावट आती है तो ही फसल को फायदा होगा। अगर ठंड में कमी आती है तो रबी की फसल में कीड़े लगने की संभावना बढ़ जाती है। किसानों को फव्वारा पद्घति से सिंचाई कर अपनी फसल को सुरक्षित रखना चाहिए।
कन्हैयालाल विश्नोई,
सहायक कृषि अधिकारी, रानीवाड़ा

ञ्चक्षेत्र में पानी की कमी के कारण इस बार रबी की फसल किसानों द्वारा कम बोई गई है। तापमान में आ रहा उतार चढ़ाव फसल को नुकसान पहुंचा सकता है। प्रयास कर फसल को बचाने में लगे है। अभी तक फसल पूरे यौवन पर नहीं आई है।

बाबूलाल चौधरी,
किसान, कोट की ढ़ाणी

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