रानीवाड़ा।
कस्बे के समीपवर्ती कालिका मंदिर में गुरू पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर प्रवचन देते हुए राजभारती महाराज ने कहा कि प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरू को सम्मानित करने का होता है। मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेले लगते है।
उन्होंने कहा कि शास्त्रों में गु का अर्थ अंधकार या मूल अज्ञान और रु का अर्थ उसका निरोधक कहा गया है। अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को गुरु कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी है। इस अवसर पर हरिसिंह केसुआ, मंछाराम परिहार, अंबालाल जीनगर, पारसमल जीनगर, राहुल वैष्णव, छेलाराम, अर्जुन राठौड़ सहित कई संत महात्माओं ने भाग लिया। राजभारती महाराज आज गुरू पूर्णिमा केसुआ आश्रम में मनाएंगे।
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