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Tuesday, 12 October 2010

एलोवेरा की खेती से मिल रहा लाभ

रानीवाड़ा
आयुर्वेद चिकित्सा सहित सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री के बढ़ते उपयोग से आर्थिक लाभ कमाने की दृष्टि से सुणतर में भी अब एलोवेरा की फसल लहलहाने लगी है। 

रानीवाड़ा कस्बे के कृषक प्रेमाराम चौधरी के अनुसार जोधपुर व बीकानेर से एलोवेरा के 50 हजार रोप लाकर करीब 35 बीघा में इसकी खेती की है। वर्तमान में पौधे लहलहाने लगे हैं। चौधरी के अनुसार एलोवेरा की फसल को पानी की जरूरत कम होती है।

इसी तरह गोधाम पथमेड़ा द्वारा संचालित केसुआ गो मंडल में भी ३०० बीघा भूमि पर एलोवेरा की खेती की जा रही है। बाजार में बढ़ती मांग को देखते हुए क्षेत्र के इस खेती को अपनाने लगे हैं। एक पौधे से करीब 8 से 10 किलो तक एलोवेरा प्राप्त होती है। इसकी पत्तियां काटकर बेची जाती है। रास आने लगी आबो हवा घृत कुमारी और ग्वारपाठे के नाम से ख्यात एलोवेरा मूलत: मरू प्रदेश की उपज है। 

कम पानी तथा भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यह रेतीले भागों में बहुतायत से पाया जाता है। बदलते मौसम चक्र के कारण इसे अब सुणतर की आबोहवा रास आ रही है। किसान इसकी खेती करके अच्छा लाभ कमा सकते है। घृतकुमारी की फसल से किसान प्रति हेक्टेयर 65 से 70 हजार रुपये बचत कर सकते हैं। इसकी खेती अनुपजाऊ भूमि में भी की जा सकती है।

क्या है खूबी

घृतकुमारी का वैज्ञानिक नाम एलोबार्बाडेसिस है। भारतीय चिकित्सा पद्धतियों आयुर्वेद और यूनानी में घृतकुमारी नाम से प्रयुक्त होने वाला यह प्रमुख एवं विशिष्ट महत्व का औषधिय द्रव्य है। इसका उपयोग विभिन्न औषधीय एवं प्रसाधन सामग्रियों के निर्माण में किया जाता है। औषधिय और सौन्दर्य प्रसाधन निर्माण में इसकी मांग काफी बढ़ी है। इसकी फसल की खूबी यह है कि इसे कैसी भी भूमि में लगाया जा सकता है। इसकी फसल को सिंचाई की कम आवश्यकता होती है। फसल 10-12 महीने में तैयार हो जाती है। लागत को निकालकर किसान 70 हजार प्रति हेक्टेयर शुद्ध आय प्राप्त कर सकते हैं।

1 comment:

Gyan Darpan said...

बहुत बढ़िया जानकारी