गुमानसिंह राव. रानीवाड़ा
पानी का संकट क्षेत्र के जंगलों में वन्य जीवों के लिए मौत का कारण बनता जा रहा है। यही हाल रहा तो इस बार अकाल के दौरान भारी संख्या में वन्यजीवों को दम तोडऩा पड़ सकता है। सुंधा पर्वत के आसपास के वन्य क्षेत्र में पिछले पखवाड़े के दौरान करीब चार दर्जन बंदरों की मौत हो गई। साथ ही अन्य वन्य जीवों पर भी इसका असर पड़ रहा है। खुद वन विभाग मान रहा है कि पानी की कमी इन जीवों के लिए जान लेवा साबित हो रही है और उसका कोई उपाय भी नहीं है। इधर, कुछ माह पूर्व ही चितलवाना के निकट नर्मदा नहर में पाली गई मछलियों के जीवन पर भी पानी के कारण संकट छाने लगा है। मछली उत्पादन कर रहे ठेकेदार की पानी के बहाव में आ रही कमी के कारण चिंता बढ़ गई है, क्योंकि पानी की कमी के कारण वहां मछलियां नहीं पनप रही हैं। शेष&पेज 9
मशीनों से खींच लेते हैं पानी
नर्मदा का ओवरफ्लो पानी लूणी व सूकड़ी नदी में छोड़ा गया था। अब यहां पानी की आवक बंद कर दी गई है। नदी क्षेत्र के आसपास के किसान अपने खेतों में सिंचाई के लिए इस पानी को मशीनों से खींच रहे हैं। जिससे दिनों दिन यहां पानी की कमी होती जा रही है। पानी के अभाव में ये मछलियां मरती जा रही हैं।
वन्य प्रेमी आया आगे
पूरण गांव के छत्तरसिंह देवल ने मूक जीवों की जान बचाने के लिए पहल की है। उसने स्वंय के टैं्रक्टर से धोरों में पेयजल पहुंंचाने का काम शुरू किया है। गर्मी के मौसम में पेयजल संकट से जंगली जानवरों को राहत पहुंचाने को लेकर जंगलों में कच्ची टंकियों को खेल के रूप में रखवा कर प्रतिदिन टैंकर से भरवाने का कार्य यह युवक कर रहा है। रोजाना सुबह देवल इस काम में लग जाते है। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में काफी तादात में वन्य जीव पानी के प्यास से मारे जा चुके है।
क्यों गहराया जलसंकट
इस क्षेत्र में जल संकट का मुख्य कारण सुकळ नदी का सूख जाना है। जिले में लगातार तीन साल से अच्छी बरसात नहीं हो रही है। सुंधा पर्वत के आसपास जंगलों से घिरे और सुंधा पर्वत से सटे पूरण व कैर गांव के निकट बहने वाली इस बारहमासी सुकळ नदी के सूख जाने से परंपरागत पेयजल स्रोत सूख गए हैं। इससे पास में स्थित दो एनीकट सूख गए हैं। पूरे पर्वतीय क्षेत्र के आसपास जंगली जानवरों के लिए पीने का पानी नहीं बचा है। वन विभाग की ओर से खेली भी नही बनाई हुई है, जबकि विभाग वन्य जीवों को पेयजल मुहैया कराने के लेकर बड़े दावे कर रहा है।
मछलियों के जीवन पर संकट
चितलवाना. करीबन साल भर पहले शुरू हुई नर्मदा नहर में पानी की आवक को देखते हुए एक ठेकेदार ने इस पानी को मछली उत्पादन के लिए उपयोगी मान कर उसमें करीबन 35 लाख बीज डाले थे, लेकिन 15 मार्च से बंद हुई पानी की आवक के चलते इन मछलियों पर भी संकट गहरा गया है। निकटवर्ती केरियां और गांधव के बीच लूणी व सूकड़ी नदी में नर्मदा नहर के ओवरफ्लो से डाले गए पानी के सूख जाने से अब ये मछलियां मरती जा रही हैं। नहर में बंद हुई पानी की आवक के साथ अब ओवरफ्लो से इक_ा हुआ पानी भी सूखने के कगार पर है। पानी की आवक बंद होने के कारण मछलियां कीचड़ में फंस कर मरने लगी हैं। इससे मछली उत्पादन के कार्य में काफी रुकावट आ रही है।
बिखरे पड़े हैं बंदरों के शव
सुंधा पर्वत के आसपास जंगलों से घिरे और सुंधा पर्वत से सटे पूरण व कैर गांव के पर्वतीय क्षेत्रों में काले मुंह वाले बंदरों के शव बिखरे पड़े हैं। इस क्षेत्र में करीब ४० बंदरों के शव पड़े हैं जो अकाल में मौत का शिकार हो गए। इस क्षेत्र में दूर दूर तक पानी का कोई साधन नहीं है। जलस्रोत सूखे पड़े हैं और वन विभाग की ओर से भी कोई व्यवस्था नहीं है। काले मुंह के बंदरों के अलावा इस क्षेत्र में जरख, सियार, लकड़बग्गा, रीछ सहित कई वन्य जीव हैं। पानी की कमी के कारण रीछों का तो गांव में आना रोज की घटना है। इसी प्रकार यहां के धोरों में कुलाचे मारते काले हरिण को भी पानी का संकट झेलना पड़ रहा है। पानी की तलाश में झुंड में हरिण गांवों की ओर आने लगे हैं। पूरण गांव से ८ किमी दूर दुर्गम क्षेत्र वणार व धाराल तक के बीच के वन क्षेत्र में हरिणों की प्यास बुझाने वाले एनीकट सूख गए हैं।
-जंगली जानवरों को पानी सप्लाई के लिए बजट का प्रस्ताव विभाग के उच्चाधिकारियों को भिजवाया गया गया है। वैसे पूरे क्षेत्र में सैकड़ों की तादात में बंदर सहित कई जीव मारे जा रहे हंै। पर्वत के टॉप पर पेयजल उपलब्ध करवाना नामुमकिन है। अब इनका भगवान ही मालिक है।
-अनिल गुप्ता, क्षेत्रीय वन अधिकारी, जसवंतपुरा
पहले नर्मदा नहर में पानी की आवक के दौरान मछली पानी के तेज बहाव में आ जाने से मर जाती थी और अब आवक बंद होने के बाद लगातार पानी की कमी से मछलियां गड्ढों व कीचड़ में फंस जाती हैं।
- मोहम्मद इस्माइल खां, मछली ठेकेदार, जोधपुर
No comments:
Post a Comment